शाबर मंत्र क्या हैं



  रूड़की – २४७ ६६७ (उत्तराखंड)
शाबर मंत्र क्या हैं
-----------------------------------------------------------
May please Visit Gopal Raju at You Tube also
What are Shabar Mantra 
https://www.youtube.com/watch?v=29caIHaETK8 

-----------------------------------------------------------
    भगवान की शपथ लेकर किसी कार्य को करना देखना हो तो इनका सबसे बड़ा उदाहरण कोर्ट-कचहरी हैं। सामान्य जीवन में भी भगवान की कसम, विद्या रानी की कसम, तुम्हारी कसम, माता रानी की कसम, गंगा की कसम, आदि शब्द प्रायः सुनने को मिल जाएंगे। देखा जाए तो शाबर मंत्र भी इस सौगंध, कसम आदि जैसे शब्दों का ही प्रारूप हैं। शाबर मंत्रों में भी शपथ दिलवाई जाती हैं। परन्तु अन्तर यह होता है कि यहाँ आदेश भी होता है और अधिकार भी। आन और शान तथा श्रद्धा और आदेश अर्थात् धमकी अथवा बलात् अपने इष्ट कार्य की सिद्धि के लिए याचक बनकर और कहीं अधिकार स्वरूप मंत्रों से याचना करी जाती है। मंत्र ऐसे होते हैं कि साधारण से साधारण ज्ञान वाला व्यक्ति भी इनको सरलता से प्रयोग कर सकता है। मंत्रों में गुरू की प्रधानता होती है। इसीलिए इनके अन्त में शब्द, ''सांचा पिण्ड कांचा, फुरो मंत्र ईश्वरी वाचा'' और ''मेरी भक्ति, गुरु ही शक्ति। स्फुरो मंत्र ईश्वरी वाचा'' आदि जैसे शब्द जोड़े जाते हैं।
    यह मंत्र जटिल और क्लिष्ट भाषा से अलग सरल और अपनी ही एक विशेष शैली में होते हैं। यह न दोहे हैं, न चौपाई हैं, न मंत्र हैं, न स्तुति है, न स्रोत हैं न सोरठा है, और न ही गीत-कवित्त आदि।
    इनकी भाषा ठेठ देहाती और प्रांतीय है। इनमें प्रमुखता होती है तो बस गुरु के सानिध्य की और इनमें हुनमंत वीर, भैरव, काली, दुर्गा, गणेश, नाथ, गोरख आदि शब्दों का प्रयोग अवश्य देखने में मिलता है। देवी-देवताओं के साथ-साथ, गोरखनाथ, महेन्द्रनाथ, चौरंगीनाथ, जंलधरनाथ, भरथरीनाथ सुलेमान, पीर-पैगम्बर आदि की शक्ति समाहित हो जाती है, ऐसा वर्णन मिलता है शाबर तंत्र में।
कुछ शाबर मंत्र देखें -
1. ऊँ गौरी। शिव भी आवे। शिव जो ब्यावे। अमुक.... का विवाह शीघ्र सिद्ध करे। देर न करे। जो देर होए, तो शिव का क्रोध होए। तुझे गुरु गोरखनाथ की दुहाई फिरै।
2. मखनो हाथी अम्बारी। उस पर बैठी कमाल खाँ की सवारी। कमाल खाँ, कमाल खाँ मुगल पठान। बैठे चबूतरे पढ़े कुरान। हजार काम दुनियाँ का करे। जा, एक काम मेरा कर। न करे, तो तीन लाख तैतीस हजार पैगम्बरों की दोहाई।
3. ऊँ नमो नगन चीटी महावीर, हूँ पूरो तेरी आश, तूं पूरो मोरी आश।
4. ऊँ नमो आदेश गुरू को। धरती में बैठ्या लोहे का पिण्ड, राख लगाता गुरू गोरखनाथ। आवन्ता- जावन्ता-धावन्ता हॉक देत, धार-धार भार-भार। शब्द साँचा पिण्ड काँचा। फुरो मंत्र, ईश्वरी वाचा।
    देखा जाए तो आज भी अशिक्षित क्षेत्र, गॅाव आदि में रोग उपचार, नज़र उतारना, साधारण सी तांत्रिक क्रियाएं, भूत-प्रेत आदि का आवेश दूर करने के लिए ओझा, तांत्रिक-यांत्रिक, गुनिया तथा झाड़-फूक करने वाले बहुतायत में मिल जाएंगे। तलाशें तो ऐसे लोग भी सभ्य समाज से अलग एक वर्ग विशेष में मिल जाएंगें जो मारण, मोहन, अच्चाटन आदि जैसे विध्वन्सक कर्म स्वार्थ और लालच वश करते हैं। परन्तु शाबर विद्या की मर्म, इसका पूर्ण कल्याणमयी उपयोग आज केवल कुछेक नाथ सम्प्रदाय वालों के पास ही हैं। वह सुप्त और गुप्त हैं, क्योंकि वह मंत्र प्रयोग सामान्यतः नहीं करते।
    इस प्रकार के विचित्र शब्दों वाले शाबर मंत्र क्या अंधविश्वास हैं ? यहाँ एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह उभर कर सामने  आता है। परन्तु जो सनातनी हैं और मानस में विश्वास रखते हैं। वह एक मत से यह अवश्य स्वीकार करेंगे कि इन विचित्र और अनपढ़ों वाली भाषा में यह मंत्र शाश्वत हैं और किसी जन साधारण कि कल्पना से नहीं रचे गए हैं। रामचरित मानस में तुलसीदास जी ने भी एक प्रसंग दिया है शाबर मंत्रों के विषय में। हम इस पर अवश्य ही विश्वास करेंगे, यदि हम हिन्दू हैं तो।
''कलि विलोकि जग हित हर गिरिजा,
शाबर मंत्र जाल जिहि सिरजा।
अनमिल आखर अरथ न जापू,
    प्रगट प्रभाव महेश प्रतापू।। इस सोरठा से तथ्य रहस्य स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है। तुलसीदास जी लिखते हैं कि कलियुग के संताप भोग रहे और विभिन्न प्रकार का पीड़ाओं से विचलित हो रहे जीवों को देखकर गिरिजा कुमारी का हृदय बहुत द्रवित हुआ और उन्होंने इन पीड़ाओं से मुक्ति दिलवाने के लिए उपाय बताने के लिए शिवजी से प्रार्थना की। उसी समय शिवजी के श्री मुख से शाबर मंत्रों का सृजन हुआ। आज शिव के वरदान स्वरूप यह मंत्र ठीक वैसे ही प्रभावशाली सिद्ध हो सकते हैं जैसे कि राम का नाम।
    यदि इनमें द्वेष, कलुषता, विध्वन्सता, ईर्ष्या-द्वेष आदि से अलग निःस्वार्थ भाव और शुद्ध मनः स्थिति से प्रयोग किए जाते हैं तो शाबर मंत्र प्रयोग सफल और फलीभूत होते ही होते हैं और वह भी शीघ्र । सबसे प्रमुख बात तो यह है कि मंत्र स्वयं में सिद्ध हैं। अन्य वैदिक, गायत्री, सनातनी, सात्विक विभिन्न देवी-देवताओं की तरह यह कलिकाल में कीलित नहीं हैं अर्थात् मंत्र उपयोग में लाने के लिए इनका किसी भी प्रकार से उत्कीलन नहीं किया जाता।
    शाबर मंत्रों की सिद्धि के जो विधान हैं वह भी बहुत सरल हैं। एक बार मंत्र सिद्ध करके रख लिए जाते हैं और आवश्यकता के अनुसार तदन्तर में उनका उपयोग किया जाता है। इसे इस प्रकार समझें कि जैसे आपने किसी हथियार आदि का एक बार लाइसैंस ले कर रख लिया।
    यदि शाबर विद्या में सिद्ध हस्त हो जाए कोई तब फिर रोग, शोक, आर्थिक मानसिक, पाविारिक आदि किसी भी प्रकार की समस्या का तत्काल समाधान मिल सकता है, यह अकाट्य सत्य है। परन्तु यह सरल इसलिए नहीं है क्योंकि न तो हमारा मन निर्मल है और न ही हमारी निःस्वार्थ भाव से कार्य करने की भावना। बस इसीलिए मंत्र आज प्रभावी नहीं है और अंधविश्वास, तिरस्कार और  उपहास की श्रेणी में रख दिए गये हैं।


टिप्पणियाँ