एम्पेथी - दूसरों को समझने की एक कला



    
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    सहानुभूति दिखलाना एक ऐसा मनोभाव है जो दुःख-दर्द देखकर स्वतः उपजने लगता है। किसी की दुर्घटना देखी, किसी का विद्रोह देखा, किसी को दर्द अथवा भूख आदि से तड़पते देखा तब एक बार को, यदि वैष्णव मत का है, तो मन द्रवित हुए बिना नहीं रहता।
    अंग्रेजी में इसको (Sympathy) कहते हैं। इसके विपरीत ऐसे कठोर दिल वाले भी हैं जो किसी के दुःख-दर्द से विक्षप्त ही नहीं होते। किसी का गला काटना, किसी की हत्या करना, किसी असहाय को सताना उसे कष्ट पहुँचाना बहुत ही सामान्य सी बातें होती हैं उनके लिए। ऐसी मनःस्थिति वालों की बात तो जाने देते हैं। परन्तु यदि कठोर से कठोर हृदय और मानसिकता वाला व्यक्ति किसी कष्टकारी स्थिति, उसके दुःख दर्द अथवा वेदना आदि को स्वयं के ऊपर घटित होने की कल्पना करे और उस वेदनामयी मनःस्थिति में कल्पना भी कर लें कि दूसरे का कष्ट, पीड़ा वेदना कैसे दूर हो तो इसको अंग्रेजी में (Empathy)  कहते हैं।
    ऐम्पेथी में व्यक्ति के अन्दर स्वतः एक प्राकृतिक अभिव्यक्ति का प्रार्दुभाव होने लगता है। उसके मन में दूसरे के प्रति सहायता, सहयोग, चिंता का भाव उत्पन्न होने लगता है। जो लोग दूसरे के लिए किसी भी प्रकार के कार्य करने अथवा करवाने से जुड़े हुए हैं उनमें यदि दूसरे के प्रति वास्तव में सहयोग, सहायता का भाव इस अभिप्राय से छिपा हुआ है कि सहायता वह दूसरे के दुःख और दर्द को दूर करने के लिए नहीं वरन् अपने स्वयं के अथवा अपने परिजनों के कष्टों को दूर करने के उद्देश्य से कर रहा है। तो इस कर्म में उसको जो सुखानुभूति होगी वह अनन्तान्त और चिरस्थाई होगी। ऐम्पेथी के मनोभाव से किया गया कार्य यदि प्रत्येक व्यक्ति अंगीकार कर ले तब तो धरती ही स्वर्ग बन जाएगी।
    वैद्य, डॉक्टर, हक़ीम, समाजिक कार्यों में लिप्त लोग, व्यवसायी वर्ग, ज्योतिष, तंत्र, मंत्र कर्म काण्ड आदि के व्यवसाय में लिप्त लोगों के लिए तो मन में यह भाव अवश्य ही रहना चाहिए कि वह दूसरे का दुःख-दर्द स्वयं के ऊपर अनुभूत होकर अपने कर्म क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। इसके परिणाम तो सुन्दरतम होंगे ही साथ ही साथ स्वयं को भी एक दिव्य आनन्द की अनुभूति होगी।

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