मुहूर्त शास्त्र के मूल शास्वत ग्रंथों में यदि तलाशें तो रोगों
के उपचार के लिए शुभ समय, दिन, माह आदि
का सुन्दर वर्णन मिल जाएगा। इनका यदि बौद्धिकता से अनुसरण किया जाए तो अच्छे परिणामों
की सम्भावना निश्चित रूप से बढ़ जाएगी। किस समय चिकित्सक से मिलें? किस दिन से अथवा किस समय से उपचार प्रारम्भ करें? शल्य
चिकित्सा में जा रहें हैं तो किस समय उसके लिए चिकित्सक तैयारी प्रारम्भ करें। ऐसे
अनेक प्रश्न है जो जिज्ञासु मन में उठ रहें होंगे। मात्र थोड़े से ज्ञान और अल्प समय
में इन प्रश्नों का समाधान मिल सकता है। बस थोड़ा सा श्रम, श्रद्धा
और संयम की आवश्यकता है इन शुभ मुहूर्र्तों की गणनाओं के लिए।
अब से लगभग पैतींस वर्ष पूर्व मैंने विचित्र प्रयोग किए थे इस
दिशा में। मेरे परिवार में भाई की पत्नी की गंभीर शल्य चिकित्सा होनी थी। खेल-खेल में
मैं मुहूर्त शास्त्र की पुस्तकें तलाशने लगा। कुछ सूत्र हाथ लगे। अकस्मात् ध्यान आया
कि गर्भवती महिला की यदि शल्य चिकित्सा होती है तो क्यों न उस भावी संतान के लिए एक
सुन्दर सा समय गणना किया जाएं। सब जानते ही हैं कि बच्चे की जन्म पत्रिका उसके जन्म
के समय के आधार पर ही बनाई जाती है। डॉक्टर ने तीन दिन के अन्दर अन्दर सर्जरी के लिए
दिशा निर्देश दे ही रखें थे। सौभाग्य से सब परिचित थे। उनको मैंने चार मिनट का एक समय
गणना करके दिया। नर्सिगं होम में चिकित्सकों और स्टॉफ के सहयोग से ठीक उस निर्दिष्ट
समय में ही शल्य चिकित्सा द्वारा एक सुन्दर कन्या का जन्म हुआ। आज हमारे सब परिचित
मानते हैं कि वह लड़की परिवार के लिए कितनी भाग्यशाली सिद्ध हुई। उसके बाद से तो एक-दो
नहीं दर्जनों की संख्या में ऐसे प्रयोग करवाता रहा हूँ । यह बात अलग है कि अधिकांशतः
ऐसे उदाहरण रहे हैं कि जहाँ सुनिश्चित समय में सर्जरी किन्हीं कारणों से सम्भव ही नहीं
हो सकी।
जो लोग आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्यति से परिचित हैं वह यह अवश्य
स्वीकार करेंगे कि मुहूर्त और मंत्र बिना यह पद्यति बिल्कुल निष्प्रभाव है। औषधि के
लिए विभिन्न घटकों के जुटाने से लेकर रोगी को देने तक के सब मुहूर्त ग्रंथों
में निर्देशित हैं। आज समय के अभाव, संयम की कमी और सबसे ऊपर
धन लौलुपता की अंधड़ दौड़ में इस मुहूर्त ज्ञान को सर्वथा भुला ही दिया गया है। थोड़े
से श्रम द्वारा यदि शुभ मुहूर्त चिकित्सा अथवा शल्य कर्म के लिए तलाश करके तद्नुसार
आगे बढ़ा जाए तो परिणाम निश्चित रूप से उत्तम सिद्ध होंगे।
चीनी ज्योतिष शास्त्र में रोगों के निदान के लिए कुछ ऐसे सयम
सुनिश्चित किए हैं जिसमें उस रोग विशेष का यदि उपचार कर्म प्रारम्भ किया जाए तो शुभ
फलदायी सिद्ध होता है ज्योतिष की गूढ़ गणनाओं से सर्वथा अलग यह वह प्राकृतिक नियमों
के अनुकूल समय हैं जो हर कोई सरलता से अपना कर आशातीत परिणाम पा सकता है।
1. साधारण रोग दिन में 11 से 3 बजे तक
2. पेट के रोग सुबह 7 से 9 बजे तक
3. गुर्दे के रोग दिन में 11 से 1 बजे तक
4. शारीरिक कष्ट सुबह 9 से 11 बजे तक
5. लिवर के रोग दिन में 1 से 3 बजे तक
6. हृदय रोग दिन में 11 बजे
से 1 बजे तक
7. मूत्र रोग दिन
में 3 से 5 बजे तक
8. फेफड़े रोग दिन में 3
से 5 बजे तक
चीनी चिकित्सा पद्यति में माना गया है शरीर में प्राकृतिक ऊर्जा
की शक्ति दिन में 3 बजे से 5 बजे तक सर्वाधिक होती है। इसलिए वहाँ सलाह दी जाती है
कि गम्भीर रोगों का इलाज दिन के निर्दिष्ट समयानुसार ही किया जाए।
यदि शल्य चिकित्सा में जा रहे हैं तो इसी प्रकार प्रयास करें
कि दोनों पक्षों की 4, 9, 14 तिथियाँ,
सोमवार, मंगलवार अथवा गुरूवार और अश्विनी,
मृगशिरा, पुष्प, हस्त,
स्वाति, अनुराधा, ज्येष्ठा,
श्रवण अथवा शतमिषा नक्षत्रों के संयोग एक साथ मिल जाएं। यदि पूर्णतया
विशुद्ध गणनाओं में जाना है तो ज्योतिष ज्ञान, ग्रहगोचर आदि का
ज्ञान परम आवश्यक है।
औषधि सेवन के लिए प्रारम्भ करने के लिए समय के अभाव में यदि विशुद्ध
गणना करना सम्भव न हो तब पंचाग से मात्र तिथि, वार और नक्षत्र
देखकर उपचार प्रारम्भ कर सकते हैं।
शुक्ल पक्ष की 2, 3, 5, 6, 7, 8, 10, 11, 12, 13 और 15 तिथियाँ इसके लिए शुभ सिद्ध होती हैं।
संयोग से यह तिथियाँ रविवार, सोमवार,
बुधवार, गुरूवार अथवा शुक्रवार की पड़ती हैं तो
यह और भी अच्छा योग है। इनमें यदि अश्विनी, मृगाशिरा,
पुनर्वस, पुष्प, हस्त,
चित्रा, स्वाति, अनुराधा,
मूल, श्रवण, घनिष्ठा और रेवती
नक्षत्र भी मिल जाए अर्थात् तिथि, दिन और नक्षत्र तीनों के संयोग
एक साथ बन जाएं तब तो बहुत ही संतोष जनक परिणाम औषधि और चिकित्सा के सिद्ध हो सकते
हैं।
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