विलक्षण धनदायक यन्त्र



 विलक्षण धनदायक यन्त्र
देवी महात्म्य’, ‘लक्ष्मी सहस्त्र’, ‘लक्ष्मी तंत्रादिमें महालक्ष्मी शक्ति स्वरुपा लक्ष्मी जी को देवी-देवताओं में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है। परब्रह्म अवतरित लीलाओं में उनकी उत्पत्ति का मूल महालक्ष्मी को ही माना गया है। नारायण का अस्तित्व भी लक्ष्मी सहित नारायण अर्थात् लक्ष्मी-नारायण युगल में ही समाहित है। विष्णुपुराण में भी स्पष्टरूप से महालक्ष्मी को विष्णुशक्ति कहा गया है। देवी महात्म्यमें महालक्ष्मी का वर्गीकरण निम्न प्रकार से स्पष्ट होता है :
श्री महालक्ष्मी
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            सरस्वती             लक्ष्मी              महाकाली
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 गौरी      विष्णु      लक्ष्मी   हिरण्यगर्भ     सरस्वती      रुद्र

     मार्कण्डेय पुराण’, ‘देवी भागवत’, ‘श्रीमद् भागवततथा ब्रह्म वैवर्त पुराणआदि में अनेक प्रसंग है जब महालक्ष्मी जी अवतरित हुई और उन्होंने विभिन्न लीला चरित्र प्रत्यक्ष दिखाए।
     यदि देवी महात्म्य अर्थात् महालक्ष्मी जी की पौराणिक चर्चा कहने लगें तो कई ग्रंथ बन जाएंगे। चर्चा करना यहॉ तर्कसंगत भी नहीं है। इस प्रयोग का महात्म्य समझने के लिए यह चर्चा अनिवार्य थी, इसलिए यह प्रसंग देना पड़ा।
     अपनी अध्यात्म तथा अन्य गुह्य विद्याओं की चर्चित त्रैमासिक पत्रिका भारतीय अनंत दर्शनके मुख्य पृष्ठ का चित्रण कार्य चल रहा था। अकस्मात् हमारे महाराज जी (सद् श्री अद्वैताचार्य जी) आ गये। मेरे बालहठ आग्रह पर उन्होंने मुझे एक यंत्र बना कर दिया। बाद में मनन करने पर स्पष्ट हुआ कि इसमें तो ब्रह्माण्ड समाया हुआ है। मातृशक्ति महालक्ष्मी को यंत्र का उद्गम दर्शा कर महाराज जी ने भी स्पष्ट कर दिया कि महालक्ष्मी जी से ही देवी-देवताओं की उत्पत्ति हुई हैः

पराशक्ति ब्रह्म - ह्रीं (GOD)
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उत्पादक(GENERATOR)      संचालक(OPERATOR)    संहारक(DEVASTER)
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राम-सीता-लक्ष्मण   कृष्ण-राधिका-बलराम   विष्णु-लक्ष्मी-शेषनाग   शिव-पार्वती-भैरव

     महाराज जी की विलक्षण शक्तियों तथा असीमित ज्ञान भंडार को देखकर मैं अचम्भा करता हॅू कि कैसे चंद मिनटों में आपने मुझे ये चमत्कारी महालक्ष्मी यंत्र उपलब्ध करवा दिया। लक्ष्मी जी की अहेतु की कृपा पाने के लिए आप भी इसे एक बार प्रयोग कर देखें।
दीवाली की महानिशा रात्रि में अथवा किसी रोहिणी नक्षत्र में चंद्रमा की होरा में यंत्र का निर्माण कर लें। समर्थ हों तो शुद्ध चांदी में इसे उभरे हुए अक्षरों में सुन्दरता से किसी सुनार से बनवा लें। केन्द्र से भी प्राण-प्रतिष्ठित चांदी का यंत्र आप उपलब्ध कर सकते है।
     यदि समय हो तो लक्ष्मी जी के  ह्रींबीज मंत्र से विनियोग, न्यास, ध्यान, आवरण पूजा आदि स्वयं कर लें अथवा किसी योग्य पंडित से करवा लें। यंत्र को अपनी पूजा में स्थापित करके नित्य लक्ष्मी मंत्र जपें। जो साधक न्यास, ध्यान आदि समयाभाव में नहीं कर सकते वह यंत्र को प्राण-प्रतिष्ठा के बाद अपनी पूजा में ऐसे स्थापित कर लें कि यंत्र का शीर्ष भाग उत्तर दिशा में रहे जिससे जब आप यंत्र के सम्मुख बैठें तो आपका मुह उत्तर दिशा में रहे। अपने दांये हाथ की तरफ जल से भरा पात्र रख लें। उसके ठीक नीचे चावल के आसन पर एक दीपक चैतन्य करके रख लें। ह्रींबीज मंत्र का यथा समय जप करें। जप की लय-नाद नाभि से आगे चक्र तक एक भंवरे के गुंजन की तरह निरंतर होती रहे। इस ह्रींनाद में आपको रमना हे। कुछ समय तक तो नित्य एक समय एक स्थानादि का व्रत लेकर महालक्ष्मी यंत्र के सामने इसी प्रकार दीप तथा जल रखकर जप करते रहें। जब नाद-अनुनाद में प्रतिध्वनित होकर स्थाई रुप से भ्रमर गुंजन की तरह अंदर ही अंदर गुन-गुन करने लगे तब दीप-जल का प्रतिबंध हटा दें। यंत्र के सामने बस यही एकाक्षी मंत्र जपा करें। यंत्र को स्थाई रुप से अपनी पूजा अथवा कार्य स्थल में स्थापित कर दें। यंत्र का शीर्ष भाग उत्तर दिशा में ही रखना है, यह ध्यान रखें। तदंतर में वर्ष में 2 बार होली तथा दिवाली पर यंत्र की पूर्व की भांति विनियोग, न्यास, ध्यान आदि से पूजा अवश्य कर लिया करें। पूरा वर्ष आपका आनंद से बीतेगा। मॅा लक्ष्मी की आपको अवश्य ही कृपा मिलेगी। यदि यह यंत्र आप ऐसे ही बना कर अपने भवन की किसी भी उत्तर दिशा वाली दीवार में टांग दें तब भी आप इसका सुप्रभाव अल्प समय में ही अनुभव करने लगेंगे।

मानसश्री गोपाल राजू (वैज्ञानिक)
रूड़की 247667 (उ.ख.)

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