मनासश्री
गोपाल राजू की पुस्तक 'तंत्र के सरल उपाय' का सार-संक्षेप
जिनको वैकल्पिक आयुर्वेद और प्राकृतिक
चिकित्सा में थोड़ा सी भी आस्था है वह गिलोय नामक वनस्पति से अवश्य परिचित होंगे। अपने
जीवन दायनी गुणों के भण्डार के कारण इसको अमृत बेल कहा गया है। इसका बोटॅनिकल नाम, 'Tinospora Cordifolia' है। अनेक बीमारियों में इसका उपयोग रामबाण सिद्ध होता
है, इसके अनेकों प्रमाण देखने को मिल जाऐंगे।
गिलोय त्रिदोष नाशक है। औषधीय गुणों के भण्डार इस वनस्पती की
विशेषता है कि यह स्वयं कभी भी नहीं मरती। इसका उचित रूप से नियमित उपयोग कर लिया जाए
तो यह अकारण किसी असाध्यस रोग के कारण किसी भी जीवन का अन्त नहीं होने देती।
गुह्य विधाओं के तंत्र श्रेत्र में भी इसका प्रयोग
किया जाता है। परन्तु इसका यह गुप्त भेद अधिकांशतः गुप्तादिगुप्त ही है। कुछ सरल से
उपाय गिलोय के दे रहा हूँ। यथाश्रद्धा जीवन में अपना कर देखें। क्या पता किसको किस
उपक्रम से कहाँ लाभ मिल जाए।
1. गिलोय का एक छोटा सा
टुकड़ा त्रिलोह के ताबीज़ में बन्द करके गले में धारण कर लें। नित्य मंत्र,
''ऊँ हौं जूँ सः'' का जप किया करें। दैहिक व्याधियों
से आपको चमत्कारी रूप से लाभ मिलेगा।
2. भवन के मुख्य द्वार
पर गिलोय की लता लगा लें, सर्पभय से आपको मुक्ति मिलेगी।
3. गिलोय, अपामार्ग तथा नागफनी की जड़े भवन के चारों ओर लगा लें, अनेक व्याधियों तथा वास्तु दोष से भवन की रक्षा होगी।
4. गिलोय का एक टुकड़ा गले
में धारण कर लें। यह एक प्रकार से रक्षा कवच का कार्य करेगा।
5. गिलोय के रस में त्रिधातु
का छल्ला डुबाकर रख लें । तीन दिन बाद साफ करके उसको बाँये हाथ की कनिष्ठिका में धारण
कर लें। यदि किसी रोग में औषधि प्रभावहीन हो रही है तो उसका शीघ्र ही सुप्रभाव दिखाई
देने लगेगा।
नोटः गिलोय कभी भी क्रय करके न लगाएं।
यह किसी से प्रसाद स्वरूप ले लें तो
और भी अच्छा है।
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