मानसश्री गोपाल राजू
विवाह करके सुखी दाम्पत्य जीवन जीना और
योग्य, सुशील, संस्कारवान संतान उत्पन्न
करना एक ऐसी इच्छा है जो धर्म
परायण है, सनातनी है और आवश्यक भी। हर
व्यक्ति इसके लिए अपने-अपने धर्म, कर्म, बुद्धि और विवेक के अनुसार
योग्य जीवन साथी की तलाश करता है। परन्तु दुर्भाग्यवश हो जाता है
इसके विपरीत। और फिर तलाशने लगता है इन सबसे छुटकारा पाने के उपाय।
बस यहाँ से ही प्रारम्म होने लगती है व्यवसायिकता।
जातक ग्रथों में वैवाहिक जीवन में सुख की
किसी भी प्रकार से कमी के लिए मंगल दोष को भी एक मुख्य घटक माना गया है। यह
कितना सत्य है अथवा मिथक इसके लिए अलग-अलग मत हैं। जो कुछ भी है परन्तु
यह अवश्य सत्य है कि इस एक अकेले दोष ने विवाह होने, न होने, वैवाहिक जीवन में असन्तोष, संतान सुख, पारिवारिक क्लेश आदि के लिए इस मंगल के दोष को
जन-मानस में हौवा बना दिया है। बौद्धिकता तो वैसे यह है कि संयम से पहले गणना
करवा लें कि पारिवारिक दोषों के पीछे मूल कारण क्या हैं। यदि-मंगल दोष का
दुष्परिणाम जन्म पत्रिकाओं में स्पष्ट हो रहा है तब आगे की कार्यवाही के
लिए मनन करें और तदनुसार उपाय तलाशें।
सनातन धर्म, जातक ग्रंथों, रुढ़ियों अथवा परम्परागत चले आ
रहे उपायों, अरुण संहिता अर्थात् लाल किताब आदि में
अनेक ऐसे उपाय उपलब्ध करवाए गए हैं जो सरल-सुगम हैं, घरेलु हैं और सबसे सुन्दर कि
व्यवसायिकता से सर्वथा अलग-अलग प्रमावशाली सिद्ध हुए हैं। यदि आपको कहीं लग रहा
हो कि मंगल दोष के कारण विवाह में किसी भी प्रकार से संन्तुलन
नहीं बन पा रहा है तो यह अपने सामर्थ्य और सुविधानुसार अवश्य अपनाकर देखें।
क्या पता इन सरल से उपायों में कहीं आपकी समस्या का समाधान छिपा हो। इन से
लाभ-मिले या न मिले, पर यह अवश्य है कि इन सनातनी कर्मों
से कम से कम अनर्थ की आंशका तो लेशमात्र भी नहीं है।
जो भी उपाय अपनाएं यह आस्था निरन्तर मन
में बनाए रखें कि इन उपयों से कोई अज्ञात शक्ति आपकी सहायता अवश्य कर रही है।
एक बार में एक से अधिक उपाय भी कर सकते हैं। परन्तु अच्छा यही है कि एक
बार में एक ही उपाय करें। उपाय के लिए समय सूर्यादय से सूर्यास्त के
मध्य का कोई चुनें।
जो भी
उपाय प्रारम्भ करें वह 8 दिन अथवा 43 दिन तक निरन्तर करते रहें।
इसके बाद ही दूसरा कोई उपाय प्रारम्म करें। यह सब उपाय आपके अपने स्वयं के
लिए हैं, इसलिए आडम्बर, दिखावे आदि से अलग इनको गुप्त
ही रखें।
∙ शाकाहारी भोजन लें। मांस-मछली
का सेवन न करें।
∙ साधु-फकीर से गण्ड़ा-ताबीज न
लें।
∙ शहद का प्रातः सेवन करें।
∙ मिश्री तथा सौंफ अतिथि को
खिलाएँ।
∙ बहन को उपहार दिया करें।
∙ साली-मौसी के घर-मिठाई दिया
करें।
∙ अनुज की संतान को स्नेह दें।
∙ जंग लगा औजार जल में प्रवाहित
करें।
∙ बजंरग बाण का पाठ करें।
∙ हनुमान जी पर चोला तथा सिंदूर
चढ़ाएं।
∙ गायत्री मंत्र का उपांशु जप
करें।
∙ दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
∙ लाल रुमाल पास रखें।
∙ सुन्दर काण्ड का पाठ करें।
∙ चांदी का छल्ला मध्यमा उँगली
में धारण करें।
∙ बन्दर को केला खिलाएं।
∙ तंदूर की मीठी रोटी कुत्ते को
दें।
∙ धर्म स्थान में मिष्ठान वितरण
करें।
∙ जल में 100 ग्राम चीनी प्रवाहित करें।
∙ कच्ची दीवार बनवा कर गिरा
दें।
∙ तांबे का सिक्का जल में
प्रवाहित करें।
∙ 101 ढाक के पत्रे जल में प्रवाहित
करें।
∙ चांदी की डिब्बी में शहद भरकर
जल में प्रवाहित करें।
∙ विधवा स्त्रियों की सहायता
करें।
∙ पति-पत्नी एक दूसरे की उचित
देखभाल करें।
∙ दक्षिण मुखी मकान में न रहें।
∙ निःसन्तान की सम्पत्ति न
खरीदें।
∙ चांदी के कड़े में तांबे की
कील लगाकर धारण करें।
∙ झूठे व्यक्ति की जमानत न दें।
∙ रोग ये परेशान हैं तो जो
गौमूत्र में मिलाकर लाल कपड़े में बांधकर रखें।
∙ अपने भोजन में से गाय, कौवे और कुत्ते का अंश
निकालें।
∙ कभी-कभी परिवार सदस्यों की
संख्या से अधिक छोटी-छोटी मीठी रोटियां बनाकर जानवरों को
दें।
∙ सिर की तरफ रात्रि में जल
रखें और प्रातः यह किसी वृक्ष में छोड़ दें।
∙ बच्चों को कष्ट हो तो गाय के
लिए ग्रास निकालें।
∙ रोग से परेशान हैं तो पीले
कपड़े में गोमूत्र में जौ मिलाकर बांध लें और रोगी के पास रख लें।
∙ दूध में जौ धोकर जल प्रवाह
करें।
∙ बच्चे के कारण चिंता अधिक
सताने लगे तो उसके जन्म दिन पर नमकीन बाटें।
∙ रेवड़ियां जल प्रवाह करें।
∙ विध्न विनाशक गणपति जी की नियमित
आराधना करें।
∙ श्री सत्य नारायण जी की व्रत
कथा करें।
∙ गणेश सहस्त्रनाम का पाठ करें।
∙ पति गुरुवार तथा पत्नी
शुक्रवार को उपटन लगाकर स्नान करें।
∙ बढ़ के वृक्ष में पति गुरुवार
और पत्नी शुक्रवार को जल दें।
∙ केसर अथवा हल्दी का तिलक
करें।
∙ विण्णु भगवान को बेसन से बना
नैवेद्य अरपीत करें।
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