क्या हैं सोलह श्रृंगार

      



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    कहा  गया है कि गुणवती स्त्री को आभूषण अथवा श्रृंगार की आवश्यकता ही नहीं है। सुन्दर गुण ही उसका आभूषण है। कबीर जी ने ऐसी स्त्री की स्तुति इस प्रकार से की है-
पतिव्रता मैली भली, गले कांच की पोत।
सब सखियन में यों दिखे, ज्यों रविससि की जोत।।
    पवित्र, सुशील और सदाचारिणी नारी तो प्रभु की असीम कृपा से ही उपलब्ध होती है। आचार्यों ने स्त्री के गहनें बताए हैं-

शीलं लज्जा च माधुर्ये दृढ़ता ह्यार्जवस्तथा,
पवित्रता च सन्तोषं सुहृत्तं विनयः क्षमा।
शुचिता गुरु शुश्रूष भूषणाः द्वादशस्मृताः।।
    अर्थात स्त्री के कुल 12 आभूषण यह हैं-
    1 शील 2 लज्जा 3 मधुरवाणी 4 दृढ़ता 5 सरल स्वभाव 6 पतिव्रता 7 सन्तोष 8 सुहृदय 9 विनय 10 क्षमा 11 हृदय की शुद्धता तथा 12 बड़ों की सेवा।
नारी के श्रृंगार को लेकर काम की दृष्टि से रसिक वर्ग ने जो बारह आभूषण कहे हैं, वह निम्न हैं -
    1 नूपूर 2 किंकन 3 हार 4 नथ 5 चूड़ी 6 मुंदरी 7 शीश फूल 8 बिन्दी, 9 कण्ठश्री 10 बेसर 11 टीका तथा 12 बाजूबन्द।
    आज आभूषण के नाम पर फैशन शब्द का चलन है जिसका अर्थ लगाया जाता है- शील और लज्जा का त्याग । उपरोक्त आभूषणों को अधिकांशतः तिलांजति दी जा रही है। आभूषण के नाम पर भड़काऊ तथा उत्तेजक मेकप तथा अंगूठी, हार ब्रेसलेट, वस्त्र आदि को मात्र एक स्टेटस सिम्बल के रूप में देखा जाता है। परन्तु एक समय था जब विद्वान लेखक स्त्री के सोलह श्रृंगार को ज्ञानवती, विदुशी, धर्म परायण, साध्वी तथा पतिव्रता स्त्री को आभूषण मानते थे। सम्भवतः आज की नारी को पता ही न हो कि वास्तव में 16 श्रृंगार और उनका सार-सत क्या है। यदि ज्ञान ना हो तो जानिए 16 श्रृंगार की संक्षिप्त व्याख्या-
1 मिस्सी - मिस (बहाना बनाना) छोड़ दें।
2 पान या मेंहदी - अपनी लाली बनाए रखने की सदैव चेष्टा करें।
3 काजल - शील का जल आँखों में रखें।
4 बेंदी - बदी (शरारत) को त्यागने का यत्न करें।
5 नथ - मन को नाथें, बुराई से बचें।
6 टीका - यश का टीका लगाएं, कलंक न लगने दें।
7 बंदगी - पति और गुरूजनों की वन्दना करें ।
8 पत्ती - अपनी लाज रखें।
9 कर्णफूल - दूसरों की प्रशंसा सुनकर पुलकित हों।
10 हंसली - पति से हंसमुख बनें।
11 मोहन माला - पति के मन को मोह लें।
12 हार - पति से हार (पराजय)स्वीकारें।
13 कड़े - कड़े (कठोर)बनकर बात न करें।
14 बांक - बांक (तिरछी) बनकर न चलें।
15 पायल - बड़ों के पैर लगे।
16 छल्ला - छल का त्याग करें।

    भारतीय सभ्यता में श्रृंगार से ही सौन्दर्य की अभिवृद्धि होती है- यही सत्य अनादि काल से चलन में है। कामशास्त्रों ने स्त्रियों के लिए निम्न सोलह श्रृंगार का वर्णन किया है-
1 उबटन
2 स्वच्छ वस्त्र
3 ललाट पर बिन्दी
4 आँखों में काजल
5 कान में कुण्डल
6 नाक में मोती की नथ
7 गले में हार
8 बालों में चोटी
9 फूलों के गहने
10 माँग में सिन्दूर
11 शरीर में केसर तथा चन्दन का अनुलेपन
12 शरीर पर अंगिया
13 मुँह में पान का बीड़ा
14 कमर में करधनी
15 हाथों में कंगन तथा चूड़ी
16 रत्न जड़ित विभिन्न आभूषण
    आज के परिपेक्ष्य में यदि श्रृंगार का अर्थ टटोला जाएं तो लज्जा, सुशीलता, संतोष आदि जैसी बातें अधिकांशतः देखने को लोग तरस रहे हैं। कहाँ तक चली जाएगी श्रृंगार की परिभाषा, यह कहना कठिन है परन्तु यह निश्चित है कि यह सब कलात्मक बातें, भावनाएँ और कवि की कल्पनाएं बस लिखने-पढ़ने तक ही सीमित होकर रह जाएगी। श्रृंगार के आज जो सोलह आभूषण हम देख रहे हैं, वह आपकी दृष्टि से कितने वास्तविक है यह सुधि पाठक स्वयं निर्णय कर लें।
    यह हैं आधुनिक 16 श्रृंगार-
1 हेयर स्पा
2 कलरिंग
3 रिबॉन्डिग
4 हेयर जैल
5 कन्सीलर
6 आई लाइनर
7 आई शैडो
8 मस्कारा
9 पियरसिंह
10 बॉडी स्पा
11 नेल आर्ट
12 मैनीक्योर
13 पैडीक्योर
14 बॉडी मसाज़
15 अंग उभारू और दर्शाऊ जीन्स, टॉप, कैप्री, हॉट पैन्ट आदि
16 महवाकाक्षाएं और असन्तोष

Kya Hai Solah Shringar
मानसश्री गोपाल राजू


                  


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