रूड़की
- 247 667 (उत्तराखण्ड)
लक्ष्मी की साधना में दीप परिक्रमा का
बहुत महत्व है परन्तु इसका विधान बहुत जटिल है। क्योंकि इसमें सोने, चांदी, कांसे, ताँबे तथा लोहे के
दीपक प्रयोग किए जाते हैं इसलिए यह साधना सर्वसाधारण की सामर्थ्य से दूर भी है। तथापि्
इन दीपकों के प्रयोग की सरलतम विधि पाठकों के लिए सर्वप्रथम इस लेख के माध्यम से दे
रहा हूँ। दीपावली-होली की रात अथवा अपने बुद्धि-विवेक से अन्य किसी शुभ मुहूर्त में
यह प्रयोग करें।
सर्वप्रथम
पांच दीपक किसी धातु के ऐेसे ले लें जिन पर सोने और चांदी की प्लेटिंग करवाई जा सके
। तांबे, लोहे तथा काँसे के दीपक सहजता से जुटाए जा सकते हैं।
यदि इस प्रकार दीपक उपलब्ध न कर पाने की भी सामर्थ्य न हो तो साधारण दीपकों में कोई
सोने, चांदी के आभूषण अथवा इनके अंश डालकर मानसिक कल्पना से सोने-चांदी
के दीपक मानकर अपना प्रयोजन सिद्ध करें। इसी
प्रकार कांसे, तांबे तथा लोहे के टुकड़े डालकर आप इन तीन धातुओं
के भी वैकल्पिक दीपक बना सकते हैं। सोने-चाँदी के दीपकों में आप शुद्ध घी का प्रयोग
करें।
तांबे तथा कांसे के दीपकों में तिल का तेल तथा
लोहे के दीपक में सरसों का तेल रखें। यदि शुद्ध घी जुटा पाने की क्षमता न हो तो सब
दीपकों में तिल का तेल प्रयोग करें। लक्ष्मी साधना के लिए सर्वोतम बत्ती होती है श्वेतार्क
की रुई की । यदि यह सुलभ न हो तो लाल रंग के कच्चे सूत की बत्ती ले लें।
लक्ष्मी साधना के लिए आप पूर्वाभिमुख होकर बैठ
जाएँ, अपने सामने पांचों दीपक इस क्रम में रखें।
- पूरब की ओर प्रज्जवलित होता चांदी का दीपक ।
- दक्षिण की ओर बत्ती वाला तांबे का दीपक ।
- पश्चिम की ओर बत्ती वाला लोहे का दीपक ।
- उत्तर की ओर जलती बत्ती वाला कांसे का दीपक और
- मध्य में ऊर्ध्वामुखी बत्ती वाला सोने का दीपक ।
पूरब का दीपक चावलों के आसन पर स्थापित करें। दक्षिण का दीपक
मसूर की दाल के आसन पर, पश्चिम वाला दीपक उड़द के आसन पर, उत्तर वाला दीपक चने की दाल पर तथा मध्य में सोने वाला दीपक गेहूँ के आसन पर
स्थापित करें। एक-एक मुट्ठी परिमाण में उक्त अनाज लेकर उनको आसन का रूप दे सकते हैं।
सर्वप्रथम आप लक्ष्मी प्रदायक कोई मंत्र अपनी सुविधानुसार
ऐसा चुन लें जो नित्य सरलता से जपा जा सके। इसके अतिरिक्त आप दुर्गासप्तशती में से
भी कोई मंत्र अपने कार्य की सिद्धि के लिए चुनकर प्रयोग कर सकते हैं।
श्री मार्कण्डेय पुराण के अर्न्तगत देवीमाहात्म्य
में श्लोक, अर्धश्लोक तथा उवाच आदि मिलाकर कुल 700 मंत्र हैं। यह महात्म्य दुर्गा सप्तशती के नाम से प्रसिद्ध है। सप्तशती अर्थ,
धर्म, काम और मोक्ष - चारो पुरूषार्थों को प्रदान
करने वाली हैं। जिस भाव, प्रयोजन तथा कामना से यह मंत्र जप किए
जाते हैं तद्नुसार ही निश्चित फल की प्राप्ति होती है। यहाँ कुछ मंत्र दे रहा हूँ,
अपने बुद्धि-विवेक से चुनकर लाभ उठाएं-
सर्वमंगल
मांगल्ये शिवे स्वार्थ साधिके।
शरण्ये यम्बके
गौरि नारायणे नमोऽस्तुते।।
या देवि
सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण सस्थिताः।
नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
ऊँ जयन्ती
मंगिलाकाली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा
क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
शरणागतदीनार्त
परित्राण परायणे।
सर्वस्यार्तिहरे
देवि नारायणि नमोऽस्तुते।।
करोतु
सा नः शुभहेतुरीश्वरी । शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः।
देहि
सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं
देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
सर्वाबाधाप्रशमनं
त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया
कार्यमस्महैरिविनाशनम्।।
विधेहि देवि
कल्याणं विधेहि परमांश्रियम्।
रूपं देहि
जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
चुने हुए मंत्र की ग्यारह-ग्यारह मालाएं क्रम
से पूरब, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर तथा केन्द्र के प्रज्जवलित दीपकों पर ध्यान करते हुए जप प्रारम्भ करें।
प्रत्येक मंत्र के बाद आसन के अनुसार अनाज की एक-एक आहुति दीपकों के सम्मुख हव्य स्वरूप
छोड़ते रहें। अन्ततः आपकी कुल आहुतियों की संख्या 5940 होगी।
अनुष्ठान की समाप्ति पर सब अनाज एकत्र करके सुरक्षित
रख लें । इन्हें अपने नित्य प्रयोग होने वाले अन्न में मिलाकर स्वयं प्रयोग करें। प्रसाद
स्वरूप अन्य को भी वितरित करें। जिनसे भी आपका कोई प्रयोजन पूरा हो रहा है, उन्हें भी इस अनाज का अंश दे सकते हैं। इससे आत्मीयता और परस्पर स्नेह-प्रेम बढ़ेगा ।
तदन्तर में नित्य इसी मंत्र की एक माला नित्य
जपा किया करें। सर्वाथ सिद्धि के लिए यह उपाय बहुत ही प्रभावशाली है । साथ ही साथ चंचला
लक्ष्मी की कृपा आप पर बनी रहेगी तथा ऋण से मुक्ति के लिए भी यह प्रयोग आपके लिए बहुत
लाभदायक सिद्ध होगा।
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