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पारिजातचिरन्तर से वृक्षों में निहित
गुण-धर्मों के कारण उनका महत्त्व कहा जाता रहा है। पीपल, बरगद,
अशोक, सिरस, ऑवला आदि
अनेक वृक्षों को तो साक्षात् देव तुल्य मानकर उनकी पूजा-अर्चना की जाती रही है।
विधि ने इन वृक्षों में जीवन दायनी शक्ति प्राकृतिक रूप से कूट-कूट कर भर दी है।
आस्था की पराकाष्ठा तो यहाँ तक है कि आम, बेल, केले, आदि के बिना तो हमारे कोई भी धार्मिक कर्म
सम्पन्न ही नहीं होते। जीव, वृक्ष, पर्यावरण
और धरती एक दूसरे के पूरक हैं और एक दूसरे से परस्पर सामंजस्य बनाए हुए हैं। इसमें
निहित प्राकृतिक तालमेल में जब भी कभी कमी आयी है, प्राकृतिक
आपदाओं ने अपना विकराल रूप दिखाया है। क्या पता वृक्षों के संरक्षण के भाव के पीछे
ही सम्मवतः उनको देव तुल्य स्थान दिया गया हो । जो कुछ भी है परन्तु यह सत्य है कि
वृक्षों के अस्तित्व के बिना जीवन की कल्पना सहजता से नहीं की जा सकती है।
भारतीय वांगमय को यदि तलाशें तो विभिन्न
वृक्षों की महिमा अनेक स्थानों पर मिल जाएगी। हरिवंश पुराण में एक विलक्षण वृक्ष
पारिजात का वर्णन आता है। इसको हरसिंगार भी कहते हैं। देवताओं और असुरों के द्वारा
समुद्र मंथन के मध्य इस वृक्ष का उत्पन्न होना पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माना
जाता है। तदन्तर में इन्द्र ने स्वर्ग में इसको स्थापित किया था।
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