आतंकी हमलों के पीछे छिपे हैं कुछ खूनी अंक



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गोपाल राजू का मूल तथा सारगर्भित शोधपूर्ण लेख।
लेखक से सर्वजन सहमत हों, यह आवश्यक नहीं।

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आतंकी हमलों के पीछे छिपे हैं कुछ खूनी अंक




(अंक 2, 7 तथा 9 ने बिठाया है सर्वाधिक आतंकी धमाकों का गणित)


     जब भी कोई आतंकी धमाका होता है, देश-विदेश दहल जाते हैं। फिर धीरे-धीरे समय सब घाव भर देता है और सब कुछ पुनः समान्य गति से होने लगता है। कौन फैलाता है यह दहशतगर्दी? किसकी विनाशक बुद्धि अंजाम देती है इन आतंकवादी धमाकों को? क्या हैं शांतिपूर्ण वातावरण बनाने के निदान? अपने-अपने बुद्धि विवेक से प्रत्येक व्यक्ति, समाज और देश गंभीरता से ऐसे अनेक प्रश्नों के उत्तर तलाशते हैं। थोड़ा सा गंभीर चिंतन दिखाई देता है और कुछ समय बाद सब कुछ भुला दिया जाता है। अधिकांशतः देखा जाता है कि इन सब बातों का अंततः एक ही समाधान निकलता है - कड़ी सुरक्षा व्यवस्था का समय, स्थान और परिस्थितियों के अनुसार विस्तार। परंतु देर-सबेर परिणाम फिर भी वही निकलता है - एक और आतंवादी धमाका।
     सोमवार, 15 अप्रेल 2013 को अमेरिका के बोस्टन शहर में हुए सिलसिले वार दो धमाकों ने पूरे विश्व को हिला कर रख दिया। 12 वर्ष पहले 11 सितंबर 2001 को हुए इन धमाकों में जान-माल की हुई हानि से अधिक महत्वपूर्ण और उतनी ही चिंताजनक बात यह रही कि दहलाने वाले यह धमाके एक महाशक्तिशाली देश में हुए। देखा जाए तो आतंकवाद की यह एक बहुत बड़ी चुनौती है। जो तमाम सुरक्षा व्यवस्था को अंगूठा दिखा रही है। बात अभी शांत भी नहीं हुई थी 17 अप्रेल 2013 को बैंगलोर शहर में हुए धमाकों ने एक और तमाचा जड़ दिया सुरक्षा व्यवस्था पर।



सर्वाधिक विध्वंसक आंकड़ा   2, 7 तथा 9 अंकों ने बैठाया है सैकड़ों आतंकी हमलों और धमाकों का गणित। सैकड़ों आतंकी हमलों का श्रमसाध्य आंकलन करके लेखक ने सिद्ध कर दिया है कि भाग्यशाली 1 सर्वाधिक सुरक्षित अंक रहा है।

     जिज्ञासु वर्ग में एक विचार यह अवश्य आता होगा कि आतंकवादी इन धमाकों का कोई पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है ताकि उस घड़ी में सुरक्षा व्यवस्था के और भी पुख्ता इंतजाम किए जा सकें।
     अंक-ज्योतिष शास्त्र की मानें तो इस समस्या का समाधान कुछ हद तक संभव भी हो सकता है। अपनी दीर्घ कालीन खोज में मैंने पाया है कि कुछ अंकों के पीछे आतंकवाद छिपा है। भारत के मुम्बई, जम्मू, हैदराबाद, दिल्ली आदि छोटे-बड़े शहरों के हमले हों अथवा रुस, अल्जीरिया, काबुल, ईरान, पाकिस्तान आदि में घटित छोटी-बड़ी कोई अन्य आतंकवादी गतिविधि, कहीं कहीं अंकों का गणित सामने अवश्य आया है। ज्योतिषीय ग्रह-गोचर के द्वारा गंभीरता से यदि अंकों की भाषा को पढ़ने-समझने का प्रयास किया जाए तो इस प्रकार की घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना भी संभव है। अंकों में शुभाशुभ का फल देने का विलक्षण गुणधर्म छिपा है। यह तथ्य आज विश्वस्तर पर स्वीकारा जा रहा है। हजारों की संख्या में अंकों के अनुकूल नाम गणना करके मैंने भी व्यक्ति के व्यवहार, एकाग्रता, पढ़ाई, व्यापार, स्वास्थ्य आदि में चमत्कारिक रुप से परिवर्तन होते देखे हैं। विषय के विस्तृत ज्ञान और अंकशास्त्र की सार्थकता के लिए मेरी सर्वाधिक चर्चित पुस्तक, ‘स्वयं चुनिए अपना भाग्शाली नामदेखी जा सकती है। यह उक्त तथ्यों का सटीक प्रमाण सिद्ध होगी।
     अब से लगभग एक दशक पूर्व 200 से अधिक विश्वभर के छोटे-बड़े आतंकी धमाकों और हमलों का मैंने अंक-ज्योतिषीय श्रमसाध्य आंकलन करके चमत्कारी पहलू उजागर किए थे। ज्योतिष की दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में उनका प्रकाशन भी हुआ था। अपने शोध कार्य में मैंने पाया था कि ऐसी आतंकवादी घटनाओं में अंक 1 की आवृत्ति सबसे कम हुई थी, भले ही अंक 1 घटना के समय मूलांक रहा हो अथवा भाग्यांक।
     ज्योतिष में प्रत्येक अंक किसी किसी ग्रह को इंगित करता है। 78 प्रतिशत से अधिक उदाहरणों में आतंक के कारक मूलांक अथवा जन्मांक 2, 7 और 9 पाए गए। उनके प्रतीक कारक ग्रह किसी किसी रुप से अग्नि तत्व राशियों से जुड़े हुए थे। ज्योतिष में सूर्य, मंगल, शनि, प्लूटो और नेप्च्यून ग्रहों को युद्ध जैसी घटनाओं को अंजाम देने का जिम्मेदार माना गया है। देखा गया कि इन क्रूर ग्रहों से विनाशकारी अंक आतंकी हमलों के समय कहीं कहीं और किसी किसी रुप से अवश्य ही जुड़े हुए थे। धमाकों में अंक 1 सबसे सुरक्षित अंक रहा। जहॉ किसी आतंकी हमले में सबसे सुरक्षित अंक 1 का हाथ रहा भी था तो उस काल में उससे संबंधित ग्रह क्रूर संज्ञक नहीं थे अथवा अग्नि तत्व से भी नहीं जुड़े हुए थे।
 ज्योतिष आंकलन के द्वारा यदि गंभीरता से अंकों की भाषा को पढ़ने और समझने का प्रयास किया जाए तो अनेक प्रकार की आतंकी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना भी संभव है, यह बात सैकड़ों उदाहराणों से रुड़की के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं ज्योतिषी गोपाल राजू ने सिद्ध कर दी है।

     विषय के जिज्ञासु एवं बौद्धिक पाठकगण अपने-अपने बुद्धि-विवेक से मेरे इस मूल शोध कार्य को और भी आगे बढ़ाने के लिए कुछ वास्तविक रुप से घटित उदाहरणों का चिंतन-मनन करें।
     मुम्बई में हुए आतंकी काण्ड (26-11-2008) में मूलांक 8 (2+6=8) यानि के दिनांक का जोड़ तथा पूर्णांक, भाग्यांक अथवा जन्मांक 2 आता है। (2+6+1+1+2+8=20=2+0=2) मूलांक 8 का कारक ग्रह शनि है जो काण्ड के समय सिंह राशि अर्थात् अग्नि तत्व में स्थित है।
     ज्योतिष में मेष, सिंह तथा धनु राशि को अग्नि तत्व का प्रतीक माना जाता है। 27-7-2008 को हुए आतंकी हमले में मूलांक तथा पूर्णांक क्रमशः 9 और 8 अंक थे। उनके कारक ग्रह मंगल तथा शनि भी दुर्भाग्य से उस दिन अग्नि तत्व में स्थित थे।
     वाराणसी में हुए धमाकों (23-11-2007) में मूलांक तथा पूर्णांक क्रमशः 5 और 7 थे। इनके कारक ग्रह बुध तथा शुक्र अग्नि तत्व राशि, नवांश आदि में स्थित थे।
     22-5-2005 को दिल्ली में हुए धमाकों में मूलांक तथा पूर्णांक क्रमशः 4 और 7 थे। इनमें सूर्य, चंद्र, राहु तथा केतू अंकों के कारक ग्रह थे तथा सभी सिंह राशि अर्थात् अग्नि तत्व में स्थित थे।
     ऐसे ही 27-2-1998 को अहमदाबाद में हुए काण्ड में मूलांक तथा पूर्णांक क्रमशः 9 और 8 थे। इनके ग्रह मंगल और शनि उस दिन अग्नि तत्व में स्थित थे। इसी प्रकार 23-11-2007 को वाराणसी में हुए धमाकों में मूलांक तथा पूर्णांक क्रमशः 5 और 7 थे। इनके कारक ग्रह बुध तथा केतू अग्नि तत्व की राशि, नवांश आदि से जुड़े हुए थे। दिल्ली में हुए धमाकों में (22-5-2005) मूलांक तथा पूर्णांक 4 और 7 थे। इनके ग्रह सूर्य, चंद्र, राहु तथा केतू सिंह राशि में स्थित थे। ठीक इसी प्रकार 27-2-1998 को मुम्बई में हुए धमाकों में मूलांक तथा पूर्णांक क्रमशः 9 और 2 थे। इनके कारक ग्रह मंगल और चंद्र किसी किसी प्रकार से षोडश वग्र कुण्डली से जुड़े हुए थे। 31-5-2007 को हुए हैदराबाद धमाकों में मूलांक 4 और पूर्णांक 9 थे। इनके कारक ग्रह सूर्य, राहु तथा मंगल ग्रह थे। मंगल उस दिन धनु राशि के नवांश में था जो कि अग्नि तत्व दर्शता है।
     मुम्बई धमाका (11-7-2006) जहॉ कारक अंक 2 और 8 थे। अमृतसर धमाका, अंक थे 5 तथा 6 मुंम्बई धमाका (9-9-2006) कारक थे 9 तथा 8 गोरखपुर धमाका (22-5-2007) कारक थे अंक 4 और 9 मालेगांव धमाका (8-9-2009) अंक बने थे 8 और 7 गुहाटी धमाके (29-9-2008) में अंक थे 3 और 3 दिल्ली धमाका (30-12-1997) अंक थे 3 और 5
     2008 तथा 2009 की अवधि में पाकिस्तान में हुए धमाकों ने तो मेरे शोध कार्य को और भी अधिक पुख्ता सबूत दे दिए। यहॉ भी मैनें पाया कि अंक 1 सर्वाधिक सुरक्षित अंक सिद्ध हुआ। यदि इस भाग्यशाली अंक की आवृत्ति हुई भी तो वह नहीं के बराबर थी। सुधी पाठक पुष्टि के लिए कुछ आतंकी धमाकों पर ध्यान दें।
दिनांक 27-3-2009 को मूलांक 9 तथा भाग्यांक 5 था।
दिनांक 21-9-2008 को मूलांक 3 तथा भाग्यांक 4 था।
दिनांक 16-3-2009 को मूलांक 7 तथा भाग्यांक 3 था।
दिनांक 22-9-2008 को मूलांक 4 तथा भाग्यांक 5 था।
दिनांक 20-2-2009 को मूलांक 2 तथा भाग्यांक 6 था।
दिनांक 12-3-2009 को मूलांक 3 तथा भाग्यांक 8 था।
दिनांक 20-9-2008 को मूलांक 2 तथा भाग्यांक 3 था।
     विदेशों में हुए कुछ आतंकी हमलों की तिथियां भी ध्यान से देखें। आप पाएंगें यहॉ भी 1 सर्वाधिक सुरक्षित अंक रहा है और 2, 7 और 9 अंकों ने आतंकी हमलों का गणित बिठाया है।
7-2-2005 का लंदन धमाका, अंक थे 7 और 3
11-12-2007 का अल्जीरिया, धमाका अंक थे 2 और 5
11-8-2007 का रुस, धमाका अंक थे 5 और 4
7-7-2008 का काबुल, धमाका अंक थे 7 और 6
17-8-2005 का बांग्लादेश धमाका अंक थे 8 और 5
11-3-2004 का मैड्रिड, स्पेन धमाका अंक थे 2 और 2
11-9-2001 का अमेरिका धमाका अंक थे 2 और 5
15-4-2013 का बोस्टन, अमेरिका धमाका अंक थे 6 और 7
16-1-2006 का अफगानिस्तान धमाका अंक थे 7 और 7
11-4-2006 का पाकिस्तान धमाका अंक थे 7 और 7
24-4-2006 का इजिप्ट धमाका अंक थे 6 और 9
15-4-2006 का श्री लंका धमाका अंक थे 6 और 9
18-7-2006 का ईराक धमाका अंक थे 9 और 6
     अभी हुए अमेरिका के सिलसिले बार 2 धमाकों ने तो मेरे शोध कार्य को और भी अधिक बल दे दिया। तारीख थी 15 अप्रेल 2013, मूलांक 6 और पूर्णांक था वही आतंकी और दुर्भाग्यपूर्ण 7 दस वर्ष बाद अपने इस शोधपूर्ण लेख को मैं दोबारा नहीं लिखता। यदि अमेरिका के बोस्टन शहर के एक दिन बाद ही बैंगलोर में 17-4-2013 को बम धमाका हुआ होता। यहॉ भी मूलांक 8 तथा भाग्यांक 9 थे।
     पाठकों ने देश-विदेश के इन उदाहरणों से देख लिया होगा कि आतंकी हमलों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण अंक 2, 7 तथा 9 किस प्रकार अपना ताण्डव दिखाया है और भाग्यशाली 1 किस प्रकार सर्वाधिक सुरक्षित अंक रहा है।

मानसश्री गोपाल राजू (वैज्ञानिक)
(राजपत्रित अधिकारी) .प्रा.
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टिप्पणियाँ

  1. Astrology is characterized as, "the divination of the alleged impacts of the stars and planets on human undertakings and earthly occasions by their positions and perspectives." There's a well-known axiom that things are "written in the stars," and for adherents of astrology,


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