पुनर्जन्म हमारी भारतीय संस्कृति के साथ-साथ ज्ञान
का एक भौतिक सिद्धांत है। शरीर की मृत्यु के साथ शरीरगत आत्मा मृत न होकर, उस देह में प्राप्त संस्कारों के साथ दूसरे देह अथवा कहें कि भौतिक शरीर में
चला जाता है। इस युक्ति-युक्त सिद्धांत को ही पुनर्जन्म का सिद्धांत कहते हैं।
कर्म तथा पुर्नजन्म का सिद्धांत
भारतीय धर्म की आधार शिला है। भारतीय सनातन संस्कृति में असंख्य ऐसे उदाहरण मिलते हैं
जो सिद्ध करते हैं कि पूर्व जन्म का सिद्धांत शास्त्रोक्त है, सत्य है और तार्किक तथा वैज्ञानिक भी। विश्व स्तर पर ऐसे अनेकानेक प्रामाणिक
तथ्यों के प्रकरण लगभग हर कोई अपने जीवन में सुनता अथवा पढ़ता रहता है।
- रामायण के अनुसार मनुष्य का कोई भी कर्म, भले ही वो अज्ञानतावश
किया गया हो, निष्फल नहीं जाता। इसीलिए महर्षि वाल्मीकि ने अनेक
उदाहरणों से पुनर्जन्म को सिद्ध कर दिया है।
- ऋग्वेद (10/55/5) के अनुसार, ‘वृद्धावस्था
से व्याप्त प्राणी की जब मृत्यु होती है तब पुनः जन्मांतर में उसका प्रादुर्भूत होता
है।’
- गीता (2/27) के अनुसार, ‘जन्म-मरण-समानाधिकण्य
नियम का कथन साक्षात भगवान ने किया है।’
- गीता (2/113) के अनुसार, ‘मनुष्य
जैसे वस्त्र धारण करके नवीन वस्त्र ग्रहण करता है, देहान्तर की
प्राप्ति भी वैसी ही होती है। हम लोगों के बहुत से जन्म हो चुके हैं।’
- सांख्यकारिका -7 के अनुसार, ‘पुनर्जन्म
था तथा पुनः भी जन्म होगा। अनुमान प्रमाण से पुनर्जन्म को सिद्ध करने के लिए दो उदाहरण
हैं - फल को देखकर अतीत बीज का अनुमान किया जाता है, तदनुसार
उत्तम कुल एवं अधम कुल से जन्म देखकर पुनर्जन्मकृत शुभाशुभ कर्म का अनुमान करके पूर्वजन्म
सिद्ध किया जाता है।’
- चरक सूत्र (11/5) के अनुसार, ‘जन्मान्तर
में किए हुए कर्म का विनाश नहीं होता, वह अविनाशी हैं।’
- योगवशिष्ठ (5/71/65) के अनुसार, ‘पुनर्जन्म का सिद्धांत न केवल युक्ति-युक्त है, अपितु
आत्मा की दृष्टि से भी आवश्यक है।’
- शुक विरचित द्वादशाक्षर स्त्रोत में आता है, ‘इस दीर्घ
संसारपथ में आवागमन करते- करते मैं परिशान्त हो गया हॅू, अब मैं
फिर नहीं आना चाहता। हे मधुसूदन! मेरी रक्षा करो।’
वेद, उपनिषद,
पुराण, आगम, मानस आदि में
ऐसे अनेक उदाहरण पुनर्जन्म तथ्य को लेकर देखे जा सकते हैं। वैदिक संस्कृति के अतिरिक्त
तीन प्रमुख मतों, बौद्ध, ईसाई तथा इस्लाम
में भी अनेक ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध हैं जिनसे पुनर्जन्म का अस्तित्व सिद्ध होता है।
ईसाइयत और इस्लाम से पूर्व फ्रांस, यूनान, इंग्लैण्ड आदि अनेक यूरोपीय देशों के साथ-साथ अरब, ईरान,
मिस्र आदि एशियाई देशवासियों में भी आत्मा के आवागमन की आस्था है। इन
देशों में अनेक जनजातियॉ पूर्व जन्म में पूर्णरुप से आस्था रखती हैं।
- बाईबिल में राजाओं की इसकी पुस्तक (पर्व 2, आयत 8,
15) के अनुसार, ‘एलियाह नबी का आत्मा मरने के बाद
एलोशा में आ गया।’
- मलाकी (पर्व 4, आयत 4-5-6) में
नबी को पुनः भेजने की बात आती है।
- पाल और ईसाई गुरुओं के प्राचीन कुछ गुप्त सिद्धांतों में पुनर्जन्म सम्मिलित
था।
कुरान
में ऐसी आयतें हैं जो पुनर्जन्म के सिद्धांत की पुष्टि करती हैं।
- (सु.रु.3 आ.7) के अनुसार,
‘क्यों कुफ्र करते हो साथ अल्लाह के और थे तुम मुर्दे पर जिलाया तुमको,
फिर मुर्दा करेगा तुमको और फिर जिलायगा तुमको, फिर और फिर जाओगे।’
- (सु.रु.30 रु 4. आयत 13)
के अनुसार, ‘अल्लाह वह है जिसने पैदा किया तुमको
फिर रिज्क दिया तुमको, फिर मारेगा तुमको, फिर जिलायगा तुमको।’
वर्तमान
में तार्किक, व्यवहारिक और पुनर्जन्म की असंख्य घटनाओं से यह तथ्य
स्वीकार किया जाने लगा है कि मृत्यु जीवन का अंत नहीं है, यह
एक पड़ाव मात्र है। वैज्ञानिक परिपेक्ष्य में देखें तो अनेक बौद्धिक वर्ग स्वीकार करता
है कि ऊर्जा का सिद्धांत ही मरने के बाद फिर से जन्म लेने के तथ्य की वैज्ञानिक रुप
से पुष्टि करता है। डॉ. स्टीफन का कहना है कि चेतना को वैज्ञानिक शब्दावली में ऊर्जा
की शुद्धतम अवस्था कह सकते हैं। विज्ञान के अनुसार ऊर्जा का किसी भी अवस्था में विनाश
नहीं होता है, सिर्फ उसका रुप-आकार बदलता है। जैसे ऊर्जा कभी
भी पूर्ण रुप से नष्ट नहीं होती वैसे ही चेतना अथवा कहें कि आत्मा नष्ट नहीं होता,
वह एक शरीर से निकल कर दूसरे नए शरीर में प्रवेश कर जाता है। प्रमुख
प्रोफेसर कार्नेगी का कहना है कि अनुसंधान के मध्य अनेक ऐसे उदाहरण भी आए हैं जिससे
व्यक्ति के शरीर पर उसमें उपस्थित पूर्व जन्म के चिन्ह वैसे के वैसे ही मौजूद थे।
चेतना का रुपान्तर तो समझ में आता
है परन्तु शरीर के चिन्हों का ज्यों के त्यों पुनः नये शरीर में परिलक्षित होना एक
बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाता है। क्या यह पुनर्जन्म की सत्यता का मौन संकेत नहीं है?
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