अंदर का संत मन ज़ोर मारता है
दूसरा बदमाश मेरा 'मैं'
भगवा अपनाकर अपना क़द बढ़ाने का ज़ोर देता है
भगवा अपनाता हूँ तो सब मैला ही मैला दिखाई देता है
भगवा अपनाकर क़द तो ज़रूर बढ़ जाता है
पर इस से संतई तो नहीं आ पाती न
इस से अच्छा तो है मेरा 'मैं' बना रहे
जो कुछ भी अंदर से है, वही बाहर है
जो अंदर हूँ, वही बाहर दिखा भी रहा हूँ
दूसरा बदमाश मेरा 'मैं'
भगवा अपनाकर अपना क़द बढ़ाने का ज़ोर देता है
भगवा अपनाता हूँ तो सब मैला ही मैला दिखाई देता है
भगवा अपनाकर क़द तो ज़रूर बढ़ जाता है
पर इस से संतई तो नहीं आ पाती न
इस से अच्छा तो है मेरा 'मैं' बना रहे
जो कुछ भी अंदर से है, वही बाहर है
जो अंदर हूँ, वही बाहर दिखा भी रहा हूँ
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें